आज दिलो में रहे गए थे, यही अरमान...
हम भी लिख दे ,कभी एक ख़त अपने महेबुब के नाम ....पास रहेती है तो वक़्त गुजरता रहेता है...
दीवाना है वो बे मेरे महेबुब का ...
वक़्त भी तो अब नहीं रहा हमारा...चाँद भी इंतजार करता है मेरे महेबुब का ...
हम तो फिदा थे उनकी झील से आखो में...
आज सारा काफीला उनका कायल है...
कुछ एसे रुवाब पर है मेरे महेबुब का नाम...
हम भी लिख...........
नहीं मिली कभी उनके बाहो के ठंडक..
तरसते रहे हम उनके जुल्फों के साये को...
खोवसिस करते रहे हम जिस कायनात की...
जो महेफुज रकता हमें अपने दिल में...
वक़्त ने भी हमारी बदनसीबी पर जोर से कह कहा लगाया था....
जब आया था उनकी जुबा पर किसी और का नाम...
हम भी लिख...
पूछते ही लोग ,और कहेते भी है....
केसे हो गए वो किशी और के नाम...
हम भी लिख....
अब तो दिन भी काली राते लगती है...
वक़्त कट रहा है ..बस अब इंतजार है ...
जब सिदात्तो से लिखेगे कोई ख़त वो....
अपनी मोहोब्त के नाम........
1 comments:
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