Monday, February 28, 2011

"मोह्बत की रात"

" पूछते है लोग मेरे महेबुब कब आयेगे ....
आयेगे जब वो ,कुछ इस तरह से आयेगे...
चहरे पर शोखी और बहारो के साथ आते है वो...
बस थोडा इंतजार और कर मेरे नसीब ...
शाम को वो अपनी अलग शान में आयेगे..
पूछते है लोग............
नाम नहीं लिखा हमने किसी गजल में उनका...
बताने के ज़हेमत भी  नहीं करेगा कोई ....
जब आप अपनी धडकनों में कुछ  रुका हुआ पायेगे...
पूछते है लोग.....
वक़्त नहीं रुका है..वो बस चलता रहा है...
ऐसे नहीं आप अपने को भूल पायगे ...
सूरज करता रहा है मिन्नते आज दिन भर उनकी..
इसलिए थोड़ी देर,आज वो रत को आयेगे...
पूछते है लोग .........
हमने की है ,तो ऐसे मोहब्त की है...
चले यहाँ से, नहीं तो मेरे ज़ख़्म दिख जायेगे..
आज से नहीं उठेगा यहाँ से कोई जनाजा ...
फार्क्र से हमने आज अपनी जिंदगी गिरवी  रख दी...
उन्ही के लिए आज हम एक नई रात लायेगे....
पूछते है लोग.....
खता मेरी नहीं इस नाज़ुक से कलम की है.....
इतनी ज़ल्दी ..हम ये केसे कह  पायेगे ....
 जो कुछ ज़ख़्म दिखा दिए इसने...
खुदा की  रहेमत है शायद,,कुछ ज़ल्दी सूख जायेगे.... 

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