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" रो रहा है,आज गुलाब लिपट कर मेरी कब्र से.. ..
जो कभी उनकी गेसुओ के रोनक से लबरेज था ...
क्या कहे अपनी दस्ताने मोहबत, पुराने ज़ख़्म उभर आते है...
सोचता था दुनिया हम जेसी ही है.....
पर उसकी हर सासों में फरेब था...
पता थी मुझे उसकी पुरानी हकीकत ....
चहरे बदलने में माहिर था वो...
जनता था मेलेगी नाकामयाबी हमें ...
पर उसमे एक जादू अजीब था ....
मै भी हरता गया हर कदम पर उससे ..
केसे कहे किसी से वो ....
बेवफा होकर भी खुशनसीब था......
बेवफा होकर भी खुशनसीब था......
दिल भी कहेता गया कलम लिखती गई. .....
मेरा भी ये केसा जूनून था.....
मेरी कब्र पर आते रहे रहे है वो हसकर ...
कहेते...ये आवारा भी अजीब था.....
ज़नाजे पर मेरे ज़सन मानते रहे है ...
वो खुस है, बस इसका सुकून था......
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1 comments:
great sir.....ii
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