Monday, February 28, 2011

"ज़रूरी काम"

आज सुबह  ही सामने अग्रवाल साहब की पत्नी का निधन हुआ है . सब लोग शोक मगन थे. इधर तिवारी जे अपनी बिटिया  की शादी  तय न हो पाने के कारण काफी दुखी  थे. आज ही शादी देखने जाना था. और सामने ये हादसा..इसी बात को लेकर तिवारी जे काफी परेसान थे.तिवारी जी  खिड़की से बराबर सामने की  खबर ले रहे  थे.वसे सुबह  एक बार हो आये थे. कुछ सोचकर तिवारी जी  मिटटी में जाने के लिए तयार होने लगे, सहसा पत्नी ने कहा, "सुबह  को तो एक बार हो ही आये हो " और सुनो, जी" अपना कम ज्यदा ज़रूरी है". और सुना है  इनका (मुर्दे का) मिलना  काफी सुभ होता है.तिवारी जी आवाक से खड़े कभी खिड़की से बहार जाती अर्थी तो कभी पत्नी का मुह देख रहे थे.ज़रूरी काम उनकी समझ से बाहर था.

मोह्बत की रात "एक नाम"

आज हम अपनी मोह्बत को ..........
एक नया नाम देने जायेगे...
इस्क में इतने सुर्खुरू और दीवाने होगे पता न था....
दवा देगे हमें वो..या और बीमार कर जायेगे..
आज हम अपनी......
मोह्बत की रस्म आज हम...
कुछ एस तरह बया कर जायेगे ..
इन्तहां लेने के कोशिस करे जब वो...
अपने गमो का बवंडर उसी सय में पायेगे...
आज हम अपनी........
अवध-ऐ -शाम ने दिया हमें बस...
बेपनाह सोहरत और सुकून ....
हमने क्या खो दिया, अपने जिन्दी का यहाँ...
इतने ज़ल्दी वो ये ,केसे समझ पायेगे...
आज हम अपनी.....
हमने बड़ी खामोसी से दिया था....
एक हसीं सा नाम उस रब को ...
बदले में दे दे हमें कोई प्यारा सा नाम....
जिसे लेकर हम सुकू से...
इस रस्मे-ए-ज़हान से जायेगे.....

"मोह्बत की रात"

" पूछते है लोग मेरे महेबुब कब आयेगे ....
आयेगे जब वो ,कुछ इस तरह से आयेगे...
चहरे पर शोखी और बहारो के साथ आते है वो...
बस थोडा इंतजार और कर मेरे नसीब ...
शाम को वो अपनी अलग शान में आयेगे..
पूछते है लोग............
नाम नहीं लिखा हमने किसी गजल में उनका...
बताने के ज़हेमत भी  नहीं करेगा कोई ....
जब आप अपनी धडकनों में कुछ  रुका हुआ पायेगे...
पूछते है लोग.....
वक़्त नहीं रुका है..वो बस चलता रहा है...
ऐसे नहीं आप अपने को भूल पायगे ...
सूरज करता रहा है मिन्नते आज दिन भर उनकी..
इसलिए थोड़ी देर,आज वो रत को आयेगे...
पूछते है लोग .........
हमने की है ,तो ऐसे मोहब्त की है...
चले यहाँ से, नहीं तो मेरे ज़ख़्म दिख जायेगे..
आज से नहीं उठेगा यहाँ से कोई जनाजा ...
फार्क्र से हमने आज अपनी जिंदगी गिरवी  रख दी...
उन्ही के लिए आज हम एक नई रात लायेगे....
पूछते है लोग.....
खता मेरी नहीं इस नाज़ुक से कलम की है.....
इतनी ज़ल्दी ..हम ये केसे कह  पायेगे ....
 जो कुछ ज़ख़्म दिखा दिए इसने...
खुदा की  रहेमत है शायद,,कुछ ज़ल्दी सूख जायेगे.... 

Tuesday, February 8, 2011

"मेरे अरमान-2"

आज दिलो में रहे गए थे, यही अरमान...
हम भी  लिख दे ,कभी एक ख़त अपने महेबुब के नाम ....
पास रहेती है तो वक़्त गुजरता रहेता है...
दीवाना है वो बे मेरे महेबुब का ...
वक़्त भी तो अब नहीं रहा हमारा...
चाँद भी इंतजार करता है मेरे महेबुब का ...
हम तो फिदा थे उनकी झील से आखो  में...
आज सारा काफीला उनका कायल है...
कुछ एसे रुवाब पर है मेरे महेबुब का नाम...
हम भी लिख...........
नहीं मिली कभी उनके बाहो के ठंडक..
तरसते रहे हम उनके जुल्फों के साये को...
खोवसिस करते रहे हम जिस कायनात की...
जो महेफुज रकता हमें अपने दिल में...
वक़्त ने भी हमारी बदनसीबी पर जोर से कह कहा लगाया था....
जब आया था उनकी जुबा पर किसी और का नाम...
हम भी लिख...
पूछते ही लोग ,और कहेते भी है....
केसे हो गए वो किशी और के नाम...
हम भी लिख....
अब तो दिन भी काली राते लगती है...
वक़्त कट रहा है ..बस  अब इंतजार है ...
जब सिदात्तो से लिखेगे कोई ख़त वो....
अपनी मोहोब्त के नाम........