Wednesday, January 26, 2011

मेरे अरमान

"आज दिलो में रेह गए थे यही अरमान....
हम भे लिख दे इक ख़त अपने महेबुब के नाम..
रहेगी खुदा से यही गुजारिस ...
ज़न्नते कब्र से भी..
नूर से भरी हो हर सुबह मेरे महेबुब की
और...
सितारों से भरी हो मेरे हमसफ़र की शाम..
हम भी लिख .............
रौसन हो गई है जिंदगी हमारी भी ...
देखी है जबसे अपने महेबुब की शाम....
अरमान यही भरे है दिल में...
कब लेगे वो मेरे जिस्म से जन....
ये तो है उनके एक मुस्कान का कम...
 हम भी.......
कभी वो नूर का बूंद नज़र आती है,..
तो कभी खोवबो के ताबीर...
मेरे दिल के मलिका है वो या....
मेरे दिल में परियो के अरमान....
हम भी .....
कत्ल नहीं करते वो बस,घायल छोड़ते है...
कुछ एसा है मेरे महेबुब का काम...








Tuesday, January 25, 2011

आज खिचड़ी का त्यौहार है,
देखा है कई रंग-बिरंगी पतंगों  को
जो दिखा रही है अपना केतरब नीले गगन में
पर इक पतंग जो है मेरे खोवबो दिल में
वुड रही है मेरे अरमानो को लेकर .........
अपने कोमल पंखो से चुना चाहती है आकाश की..
बुलन्दियो को...
डर जाता हू  कही फट न जाये...
जोर से बहती है हवा कभी तो ..
दर्द  होने  लगते है अरमान..
पर जब तक नहीं पहुच पाती है..
वह अपनी उम्मीद के बुलन्दियो को ..
उड़ना ही है नसीब उसका .
आखिर वो पतंग ही तो है,
जो वुड  रही है मेरे अरमानो में ................